भाग – 1 (अनुच्छेद 1 – 4 )
अनुच्छेद 1 : भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा।
अनुच्छेद 2 : संघ में नये राज्यों का प्रवेश और उनकी स्थापना की शक्ति |
अनुच्छेद 3 : नये राज्यों का निर्माण और वर्त्तमान राज्यों के क्षेत्रों ,सीमाओ तथा नामों में परिवर्तन |
नागरिकता भाग – 2 (अनुच्छेद 5 – 11 )
भारत में एकल नागरिकता की वयवस्था है।
मौलिक अधिकार भाग – 3 (अनुच्छेद 12 – 35 )
इसे अमेरिका के संविधान से लिया गया है। संविधान के भाग – 3 को अधिकार पत्र (Magna Carta) कहा जाता है।
मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार , लेकिन 44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा सम्पति के अधिकार (अनुच्छेद 31 एवं 19 f) को हटाकर इसे संविधान के भाग -12 एवं अनुच्छेद 300 a के अंतर्गत कानूनी अधिकार बना दिया गया।
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 – 18 )
अनुच्छेद 14 : विधि (कानून) के समक्ष समानता।
अनुच्छेद 15 : धर्म , मूल वंश ,जाति , लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेद।
अनुच्छेद 16 : लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता।
अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का अंत।
अनुच्छेद 18 : उपाधियों का अंत।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 – 22 )
अनुच्छेद 19 (a) : बोलने की स्वतंत्रता , प्रेस की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (b) : शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (c) : संघ बनाने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (d ) : देश में किसी भी क्षेत्र में घूमने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (e ) : देश में किसी भी क्षेत्र में निवास करने की स्वतंत्रता (अपवाद : जम्मू -कश्मीर )
अनुच्छेद 19 (g) : किसी भी व्यापार या जीविका चलाने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 20 : अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है :
1. किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार ही सजा मिलेगी।
2. अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी न की पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।
3. किसी भी वयक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21 : प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार
किसी भी वयक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार हीं वंचित किया जयेगा अन्यथा नहीं।
अनुच्छेद 21(a) : शिक्षा का अधिकार
86 वें संविधान संसोधन 2002 के द्वारा 6 से 14 वर्ष के आयु के बच्चों को निशुक्ल और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराया जयगा।
अनुच्छेद 22 :
यह अनुच्छेद वयक्ति को गिरफ़्तारी एवं निरोध से संरक्षण प्रदान करता है।
हिरासत दो तरह की होती है :
दंड विषयक (कठोर)
निवारक
दंड विषयक हिरासत वयक्ति को दंड देती है जिसने अपराध स्वीकार कर लिया है और अदालत में उसे दोषी ठहराया जा चूका है।
निवारक हिरासत के अंतर्गत वयक्ति को अपराध करने के पुर्व हीं या शक के आधार पर जिरफ्तार कर लिया जाता है।
इस कानून के तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है :
1. हिरासत में लेने का कारन बताना होगा।
2. अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार।
3. 24 घंटे के अंदर दंडाधिकारी के समक्ष पेश करना होगा।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 -24)
अनुच्छेद 23 : मानव के दुव्यापार बलात श्रम निषेध।
अनुच्छेद 24 : 14 वर्ष के कम आयु के बच्चों को कारखानों या फैक्ट्री में काम करने पर निषेध।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 -28)
अनुच्छेद 25 : कोई भी वयक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका – प्रचार प्रसार कर सकता है।
अनुच्छेद 26 : इसके तहत वयक्ति अपने धर्म के लिए संश्थाओं की स्थापना कर सकता है।
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
अनुच्छेद 29 : अल्पसंख्यक के हितो का संरक्षण
इस अनुच्छेद के अंतर्गत कोई भी अलाप्संख्यक वर्ग अपनी भाषा,लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है। किसी भी नागरिक को राज्य में आने वाले संस्थान में धर्म , जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से रोका नहीं जा सकता।
अनुच्छेद 30 : शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अपाप्संख्यक वर्गों का अधिकार
संविधानिक उपचारो का अधिकार
अनुच्छेद 32 : इस अनुच्छेद को डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ‘ संविधान की आत्मा और ह्रदय’ कहा है। इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए समुचित कार्रवाइयों द्वारा उच्तम न्यायलय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है एवं इसके तहत 5 तरह के रीट निकालने की शक्ति प्रदान की गयी है।
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) :यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है , जो यह समझता है की उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है।
2 . परमादेश (Mandamus) : यह रिट उस समय जारी किया जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करता है। यह रिट निजी व्यक्ति या इकाई के विरुद्ध जारी नही किया जा सकता।
3 . प्रतिषेद (Prohibition) : यह रिट उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालय को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है की यह मामला आपके अधिकार क्षेत्र के बाहर का है , आप इस मामले में कारवाही न करे।
4. उत्प्रेषण (Certiorari) : इसके अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है की वे अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय -निर्णयन के लिए उसे वरिष्ट न्यायालय को भेजें । पहले यह रिट प्रशासनिक इकाइयों के खिलाफ जारी नहीं किया जा सकता था लेकिन 1991 के उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी की उत्प्रेषण व्यक्तियों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ भी जारी किया जा सकता है।
5. अधिकार पृच्छा (Quo – Warranto) : यह रिट तब जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है।